Lymphatic Filariasis
Lymphatic Filariasis
लिम्फेटिक फाइलेरियासिस (Lymphatic Filariasis)
परिचय:
लिम्फेटिक फाइलेरियासिस, जिसे आमतौर पर हाथीपाँव रोग (एलिफेंटियासिस) के रूप में जाना जाता है, परजीवी संक्रमण के कारण होने वाला एक उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग (Neglected Tropical Disease- NTD) है जो संक्रमित मच्छरों के काटने से फैलता है।
वैश्विक प्रसार:
44 देशों में 882 मिलियन से अधिक लोग हाथीपाँव रोग/लिम्फेटिक फाइलेरियासिस (Lymphatic Filariasis) के खतरे का सामना करते हैं और उन्हें निवारक कीमोथेरेपी (Preventive Chemotherapy) की आवश्यकता होती है।
भारत में LF एक गंभीर लोक स्वास्थ्य समस्या है। वर्तमान में, देश के 20 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में 345 लिम्फैटिक फाइलेरिया स्थानिक ज़िले हैं।
MDA के 75% ज़िले 5 राज्यों बिहार, झारखंड, उत्तरप्रदेश, ओडिशा और तेलंगाना से हैं।
लिम्फेटिक फाइलेरियासिस शहरी गरीबों में अधिक प्रचलित है और ग्रामीण आबादी के सभी वर्गों को प्रभावित करता है।
प्रभाव:
संक्रमण बचपन में शुरू होकर वयस्कता तक संचय होता है, जिसके परिणामस्वरूप अपरिवर्तनीय दीर्घकालिक रोग की स्थिति पैदा होती है।
यह बीमारी कलंक, मानसिक पीड़ा, सामाजिक अभाव और आर्थिक नुकसान पहुँचाती है तथा प्रभावित समुदायों में गरीबी का एक प्रमुख कारण है।
कारण और संचरण:
परजीवी संक्रमण (Parasitic Infection):
लिम्फैटिक फाइलेरियासिस फिलारियोडिडिया परिवार के नेमाटोड (roundworms) के रूप में वर्गीकृत परजीवियों (Parasitic) के संक्रमण के कारण होता है। फाइलेरिया जैसे ये कृमि (worms) तीन प्रकार के होते हैं:
वुचेरेरिया बैन्क्रॉफ्टी (Wuchereria Bancrofti), जो 90% मामलों के लिये उत्तरदायी होता है।
ब्रुगिया मलाई (Brugia Malayi), जो शेष अधिकांश मामलों का कारण बनता है।
ब्रुगिया टिमोरी (Brugiya Timori), भी इस रोग का कारण है।
संचरण (Transmission ) चक्र:
वयस्क कीड़े लसीका वाहिकाओं( lymphatic vessels) में रहते हैं, जो माइक्रोफिलारिया का उत्पादन करते हैं जो रक्त में फैलते हैं।
मच्छर किसी संक्रमित मेज़बान को काटने से संक्रमित हो जाते हैं और लार्वा को मनुष्यों तक पहुँचाते हैं, जिससे संचरण चक्र कायम रहता है।
लक्षण और जटिलताएँ:
लक्षण रहित और दीर्घकालिक स्थितियाँ:
अधिकांश संक्रमण लक्षण रहित होते हैं किंतु इसकी दीर्घकालिक स्थितियों से लिम्फोएडेमा (अंगों की सूजन), हस्तिपाद/एलिफेंटियासिस (त्वचा/ऊतकों का स्थूल होना) तथा हाइड्रोसील (अंडकोश की सूजन) की समस्या हो सकती है जिससे शरीर में विकृति तथा मनोवैज्ञानिक विकार की स्थिति उत्पन्न हो सकती।
तीव्र प्रकरण:
तीव्र शोथ (Inflammation) की स्थिति अमूमन दीर्घकालिक स्थितियों से संबंधित है जो संक्रमित व्यक्तियों में दुर्बलता तथा उनकी कार्यक्षमता प्रभावित करने का कारण बनती है।
उपचार एवं रोकथाम:
निवारक कीमोथेरेपी:
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने लिम्फेटिक फाइलेरियासिस की रोकथाम के लिये MDA के साथ-साथ प्रभावित लोगों को वार्षिक रूप से निवारक दवाएँ वितरित करने की सिफारिश की।
MDA रेजीमेन्स/नियम:
अन्य फाइलेरिया रोगों के साथ सह-स्थानिकता के आधार पर, माइक्रोफाइलेरिया घनत्व को कम करने और संचरण को रोकने के लिये विभिन्न उपचार नियमों के अनुपालन की सलाह दी जाती है।
रुग्णता प्रबंधन:
दीर्घकालिक स्थितियों के निदान और रोग को बढ़ने से रोकने के लिये सर्जरी, स्वच्छता उपाय तथा नैदानिक देखभाल आवश्यक है।
वेक्टर नियंत्रण:
मच्छर नियंत्रण जैसी रणनीतियाँ संचरण को कम करने तथा निवारक कीमोथेरेपी प्रयासों को पूरक बनाने में मदद करती हैं।
WHO की प्रतिक्रिया और लक्ष्य:
लिम्फेटिक फाइलेरियासिस उन्मूलन हेतु वैश्विक कार्यक्रम (GPELF):
इसका शुभारंभ वर्ष 2000 में किया गया था तथा इसका लक्ष्य निवारक कीमोथेरेपी और रुग्णता प्रबंधन के माध्यम से एक सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में मौजूद लिम्फेटिक फाइलेरियासिस को खत्म करना है।
वर्ष 2020 में GPELF ने नए NTD रोड मैप (2021–2030) के लिये निम्नलिखित लक्ष्य निर्धारित किये:
मान्यता: 80% स्थानिक देशों (58) ने MDA के बाद कम संक्रमण दर बनाए रखते हुए उन्मूलन के सत्यापन के मानदंडों को पूरा/मान्य किया।
अनुवीक्षण: सभी स्थानिक देशों (72) को रोग के पुनः संचरण को रोकने के लिये अनुवीक्षण की आवश्यकता है।
MDA में कमी: आबादी के बड़े हिस्से पर औषधियों के प्रयोग की अनिवार्यता को कम करना।
भारत की पहल:
मिशन मोड इंडिया मल्टी-ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (MDA) अभियान वर्ष में दो बार राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस (10 फरवरी और 10 अगस्त) के साथ समन्वयित किया जाता है।
भारत वैश्विक लक्ष्य (2030) से तीन वर्ष पूर्व, वर्ष 2027 तक लिम्फेटिक फाइलेरियासिस को समाप्त करने के लिये प्रतिबद्ध है।
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