Nagoya Protocol
Nagoya Protocol
पौधों, जानवरों और सूक्ष्मजीवों की लगभग 11,000 प्रजातियों के साथ समृद्ध जैवविविधता का दावा करने वाले मध्य अफ्रीकी देश कैमरून ने हाल ही में जैवविविधता पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCBD) के तहत एक समझौते, पहुँच और लाभ साझाकरण पर नागोया प्रोटोकॉल को अपनाया है।
नागोया प्रोटोकॉल का उद्देश्य आनुवंशिक संसाधनों के उपयोग से उत्पन्न होने वाले लाभों के उचित और न्यायसंगत बंटवारे को बढ़ावा देना है।
कैमरून को नागोया प्रोटोकॉल अपनाने की क्या आवश्यकता थी?
पारंपरिक ज्ञान का संरक्षण:
दवाओं के निर्माण अथवा फसल उत्पादन के लिये विभिन्न प्रकार के पौधों, जानवरों और रोगाणुओं में पाए जाने वाले कई आनुवंशिक संसाधनों अथवा आनुवंशिक जानकारी को पारंपरिक ज्ञान के संरक्षण में महत्त्वपूर्ण माना जाता हैं। पारंपरिक ज्ञान से तात्पर्य उस समझ, आविष्कार तथा तरीकों से है जो स्वदेशी एवं स्थानीय समुदायों ने इन संसाधनों के संबंध में विकसित की है।
बायोपाइरेसी को रोकना और संसाधनों को समान रूप से साझा करना:
बायोप्रोस्पेक्टिंग (जैव-संभावना) हेतु दवाओं, भोजन या अन्य उत्पादों के नए स्रोतों के लिये जैविक सामग्री की खोज आनुवंशिक संसाधन तथा पारंपरिक ज्ञान दोनों के लिये लाभदायक हैं। जैवविविधता के सतत् उपयोग और संरक्षण को बायोप्रोस्पेक्टिंग द्वारा भी सहायता प्रदान की जा सकती है।
उदाहरण के लिये:
प्रूनस अफ्रीकाना, जो कि कैमरून का स्थानीय पौधा है, का उपयोग प्रोस्टेट कैंसर की दवाएँ बनाने के लिये किया जाता है, लेकिन विदेशी कंपनियाँ इसका एक किलोग्राम 2.11 अमेरिकी डॉलर में खरीदती हैं और इससे बनी दवाएँ 405 अमेरिकी डॉलर में बेचती हैं।
कैमरून का बुश मैंगो औषधीय गुणों से भरपूर है। जिसकी पत्तियों, जड़ों एवं छाल का उपयोग दर्दनिवारक के रूप में किया जाता है। इस फल ने यूरोपीय फार्मास्युटिकल और कॉस्मेटिक कंपनियों का ध्यान आकर्षित किया है।
स्थानीय समुदायों को लाभ पहुँचाना:
जिन कस्बों में पौधे एकत्रित किये गए थे, उन्हें फर्मों के राजस्व से कुछ भी लाभ प्राप्त नहीं हुआ।
नागोया प्रोटोकॉल को अपनाने से जैवविविधता पर आधारित नवाचार और विकास को बढ़ावा देने के साथ-साथ स्वदेशी तथा स्थानीय समुदायों के अधिकारों एवं हितों की रक्षा करने में सहायता प्राप्त होती है।
UNCBD के तहत नागोया प्रोटोकॉल क्या है?
जैविक विविधता पर कन्वेंशन (CBD):
CBD, जैवविविधता के संरक्षण हेतु कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि है जो वर्ष 1993 से लागू है।
इसके 3 मुख्य उद्देश्य हैं:
जैवविविधता का संरक्षण।
जैवविविधता के घटकों का सतत् उपयोग।
आनुवंशिक संसाधनों के उपयोग से होने वाले लाभों का उचित एवं न्यायसंगत बँटवारा।
लगभग सभी देशों ने इसकी पुष्टि की है (अमेरिका ने इस संधि पर हस्ताक्षर तो किये हैं लेकिन पुष्टि नहीं की है)।
भारत ने CBD के प्रावधानों को प्रभावी करने के लिये ‘जैवविविधता अधिनियम 2002’ लागू किया।
CBD का सचिवालय मॉन्ट्रियल, कनाडा में स्थित है जो संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के तहत संचालित होता है।
जैविक विविधता अभिसमय के तहत पार्टियांँ (देश) नियमित अंतराल पर मिलती हैं और इन बैठकों को कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ (Conference of Parties- COP) कहा जाता है।
वर्ष 2000 में जैव सुरक्षा पर कार्टाजेना प्रोटोकॉल के रूप में ज्ञात अभिसमय के लिये एक पूरक समझौता अपनाया गया था।
यह प्रोटोकॉल आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी के परिणामस्वरूप संशोधित जीवित जीवों द्वारा उत्पन्न संभावित जोखिमों से जैविक विविधता की रक्षा करता है।
नागोया प्रोटोकॉल:
नागोया प्रोटोकॉल (COP10) को आनुवंशिक संसाधनों तक पहुँच और उनके उपयोग से होने वाले लाभों का उचित तथा न्यायसंगत बँटवारा के लिये नागोया, जापान में COP10 में अपनाया गया था।
यह न केवल CBD द्वारा कवर किये गए आनुवंशिक संसाधनों और उनके उपयोग से उत्पन्न होने वाले लाभों पर लागू होता है, बल्कि CBD द्वारा कवर किये गए आनुवंशिक संसाधनों से जुड़े पारंपरिक ज्ञान (TK) तथा इसके उपयोग से उत्पन्न होने वाले लाभों पर भी लागू होता है।
आनुवंशिक संसाधनों पर नागोया प्रोटोकॉल के साथ, COP-10 ने जैवविविधता को बचाने के लिये सभी देशों द्वारा कार्रवाई हेतु दस वर्ष की रूपरेखा को भी अपनाया।
आधिकारिक तौर पर "वर्ष 2011-2020 के लिये जैवविविधता रणनीतिक योजना" के रूप में जाना जाता है, इसने 20 लक्ष्यों का एक सेट प्रदान किया, जिसे सामूहिक रूप से जैवविविधता हेतु आइची लक्ष्य (Aichi Targets for Biodiversity) के रूप में जाना जाता है।
जैवविविधता पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय के पक्षकारों के 15वें सम्मेलन (COP15) के दौरान कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैवविविधता फ्रेमवर्क (GBF) का अंगीकरण किया गया।
इस फ्रेमवर्क में वर्ष 2050 तक हासिल करने हेतु चार लक्ष्य तथा वर्ष 2030 के लिये निर्धारित तेईस लक्ष्य शामिल हैं।
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