About POCSO Act
About POCSO Act
हाल ही में मद्रास उच्च न्यायालय ने एस. हरीश बनाम पुलिस निरीक्षक (2020) मामले में निर्णय देते हुए कहा कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी (child pornography) डाउनलोड करना सूचना प्रौद्योगिकी (IT) अधिनियम, 2000 की धारा 67B के तहत अपराध नहीं माना जा सकता। न्यायालय ने केरल उच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित एक पूर्व-दृष्टांत का हवाला दिया जहाँ माना गया था कि निजी स्थानों पर पोर्नोग्राफी देखना भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 292 का उल्लंघन नहीं है।
पुलिस ने अन्वेषण के बाद अंतिम रिपोर्ट दायर की थी और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012 की धारा 14 (1) और आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 67B उच्च न्यायालय द्वारा इसका संज्ञान लिया गया था।
POCSO अधिनियम 2012
परिचय:
POCSO अधिनियम को बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (1992) के भारत के अनुसमर्थन के रूप में अधिनियमित किया गया था।
इस विशेष कानून का उद्देश्य बच्चों के यौन शोषण और यौन दुर्व्यवहार के अपराधों को संबोधित करना है, जिन्हें तब तक या तो विशेष रूप से परिभाषित नहीं किया गया था या पर्याप्त रूप से दंडित नहीं बनाया गया था।
अधिनियम 18 वर्ष से कम आयु के किसी भी व्यक्ति को ‘बाल’ (child) के रूप में परिभाषित करता है। अधिनियम अपराध की गंभीरता के अनुसार दंड का प्रावधान करता है।
बच्चों के विरुद्ध यौन अपराध करने के लिये मृत्युदंड सहित अधिक कठोर दंड का प्रावधान करने के लिये अधिनियम की वर्ष 2019 में समीक्षा की गई और इसमें संशोधन किया गया। इसका उद्देश्य अपराधियों को भयभीत कर ऐसे अपराध के लिये हतोत्साहित करना और बच्चों के विरुद्ध ऐसे अपराधों पर रोक लगाना था।
भारत सरकार ने POCSO नियम, 2020 को भी अधिसूचित कर दिया है।
POCSO नियमों का नियम-9 विशेष न्यायालय को FIR दर्ज होने के बाद बच्चे की राहत या पुनर्वास से संबंधित आवश्यकताओं के लिये अंतरिम मुआवज़े का आदेश देने की अनुमति देता है। यह मुआवज़ा अंतिम मुआवज़े, यदि कोई हो, के विरुद्ध समायोजित किया जाता है।
POCSO नियम बाल कल्याण समिति (CWC) को अन्वेषण एवं परीक्षण प्रक्रिया के दौरान बच्चे की सहायता करने के लिये एक सहायक व्यक्ति प्रदान करने का अधिकार देते हैं।
यह सहायक व्यक्ति शारीरिक, भावनात्मक और मानसिक कल्याण सहित बच्चे के सर्वोत्तम हितों को सुनिश्चित करने के लिये ज़िम्मेदार होता है।
विशेषताएँ:
लैंगिक-तटस्थ प्रकृति:
अधिनियम मानता है कि बालक एवं बालिकाएँ दोनों यौन शोषण के शिकार हो सकते हैं और पीड़ित किसी भी लिंग का हो, उसके साथ ऐसा दुर्व्यवहार एक अपराध है।
यह इस सिद्धांत के अनुरूप है कि सभी बच्चों को यौन दुर्व्यवहार एवं शोषण से सुरक्षा का अधिकार प्राप्त है और कानूनों को लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं करना चाहिये।
मामलों की रिपोर्टिंग में आसानी:
न केवल व्यक्तियों द्वारा बल्कि संस्थानों द्वारा भी बच्चों के यौन शोषण के मामलों की रिपोर्ट करने के लिये अब पर्याप्त सामान्य जागरूकता मौजूद है क्योंकि घटना की रिपोर्ट न करना अधिनियम के तहत एक विशिष्ट अपराध बना दिया गया है। इससे बच्चों के विरुद्ध अपराधों को छिपाना तुलनात्मक रूप से कठिन हो गया है।
विभिन्न शब्दों की स्पष्ट परिभाषा:
चाइल्ड पोर्नोग्राफी सामग्री के भंडारण को एक नया अपराध बना दिया गया है।
इसके अलावा, ‘यौन उत्पीड़न’ (sexual assault) के अपराध को IPC में ‘महिला का शील भंग करने’ की अमूर्त परिभाषा के विपरीत स्पष्ट शब्दों में (न्यूनतम दंड में वृद्धि के साथ) परिभाषित किया गया है।
विशेष राहत का तत्काल भुगतान:
POCSO नियमों के तहत, CWC ज़िला विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA), ज़िला बाल संरक्षण इकाई (DCPU) या किशोर न्याय अधिनियम 2015 के तहत स्थापित कोष का उपयोग कर भोजन, वस्त्र एवं परिवहन जैसी आवश्यक आवश्यकताओं के लिये तत्काल भुगतान की अनुशंसा कर सकता है।
CWC की अनुशंसा प्राप्त होने के एक सप्ताह के भीतर यह भुगतान हो जाना चाहिये।
मद्रास उच्च न्यायालय के हालिया निर्णय से जुड़े मुद्दे
धारा 67B की भिन्न व्याख्या:
अन्वेषण के तथ्य IT अधिनियम, 2000 की धारा 67B (b) के अनुप्रयोग को आकर्षित करने के लिये पर्याप्त होते हैं, लेकिन उच्च न्यायालय ने माना कि अपराध तब तय होगा यदि आरोपी ने ऐसी सामग्री प्रकाशित, प्रसारित, निर्मित की हो जो बच्चों को यौन कृत्य या आचरण में प्रदर्शित करती हो।
इस प्रकार, उच्च न्यायालय ने धारा 67B का संपूर्ण विश्लेषण किये बिना और उप-खंड (b) को पढ़े बिना ही (जहाँ आरोपी के कृत्य को स्पष्ट रूप से वर्णित किया गया है) निर्णय दे दिया है।
केरल उच्च न्यायालय के निर्णय का अधूरा संदर्भ:
मद्रास उच्च न्यायालय ने विवरण का उल्लेख किये बिना (यानी शीर्षक या वर्ष का उल्लेख) एक पूर्व-दृष्टांत का संदर्भ लिया, जहाँ केरल उच्च न्यायालय ने IPC की धारा 292 के दायरे पर विचार किया था और माना था कि किसी व्यक्ति द्वारा अश्लील तस्वीर या अश्लील वीडियो देखना स्वयं में कोई अपराध नहीं है।
उस मामले का तर्क या सिद्धांत चाइल्ड पोर्नोग्राफ़ी के मामलों पर लागू नहीं होता है, विशेष रूप से उस मामले पर जिस पर मद्रास उच्च न्यायालय विचार कर रहा था।
धारा 67B की संवैधानिक वैधता की लापरवाही:
केरल उच्च न्यायालय द्वारा निर्णित अनीश बनाम केरल राज्य मामला (2023) चाइल्ड पोर्नोग्राफ़ी से संबंधित नहीं था। जबकि निजता के स्तर पर एडल्ट पोर्नोग्राफ़ी देखना IPC की धारा 292 के तहत अपराध नहीं माना गया है (केरल उच्च न्यायालय और भारत के सर्वोच्च न्यायालय दोनों द्वारा), बच्चों से संबंधित स्पष्ट यौन सामग्री डाउनलोड करना स्पष्ट रूप से IT अधिनियम के तहत एक अपराध है।
अब तक किसी भी मामले में धारा 67B(b) की संवैधानिकता को चुनौती नहीं दी गई है और न ही इसके अधिकार-क्षेत्र को असंवैधानिक ठहराया गया है।
CrPC की धारा 482 पर अत्यधिक निर्भरता :
मद्रास उच्च न्यायालय ने न्यायालय की प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने के लिये आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 482 के तहत अपनी अंतर्निहित शक्तियों का इस्तेमाल किया और न्यायिक कार्यवाही को रद्द कर दिया।
CrPC की धारा 482 के तहत शक्तियों के प्रयोग या संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत असाधारण शक्तियों के प्रयोग के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय ने हरियाणा राज्य बनाम भजन लाल मामले (1992) में कुछ दिशानिर्देश तय किये हैं, जिसमें यह शामिल है कि ऐसी शक्तियों का उपयोग तब किया जा सकता है जहाँ FIR में लगाये गए आरोप, प्रथम दृष्टया, अपराध का गठन नहीं करते हैं या आरोपी के विरुद्ध मामले का कारण नहीं बनाते हैं।
IT अधिनियम 2000 की धारा 67B:
धारा 67B में विभिन्न पहलुओं से संबंधित पाँच उप-खंड मौजूद हैं:
यौन कृत्य या आचरण में लिप्त बच्चों को चित्रित करने वाली सामग्री को प्रकाशित या प्रसारित करने से संबंधित
चाइल्ड पोर्नोग्राफ़ी सामग्री डाउनलोड करने सहित अन्य कृत्यों से संबंधित
बच्चों को ऑनलाइन माध्यम से यौन संबंध बनाने, लुभाने या प्रेरित करने से संबंधित
बच्चों के साथ ऑनलाइन दुर्व्यवहार को सुविधाजनक बनाने से संबंधित
बच्चों के साथ यौन दुर्व्यवहार/यौन कृत्य को रिकॉर्ड करने से संबंधित।
POCSO अधिनियम, 2012 की धारा 14:
धारा 14 की उप-धारा 1 में कहा गया है कि जो कोई, अश्लील प्रयोजनों के लिये किसी बच्चे या बच्चों का उपयोग करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि पाँच वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा तथा दूसरे या पश्चात्वर्ती दोषसिद्धि की दशा में, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडित होगा।
उप-धारा 2 में कहा गया है कि जो कोई भी उप-धारा 1 के तहत अश्लील प्रयोजनों के लिये किसी बच्चे या बच्चों का उपयोग करता है, ऐसे अश्लील कृत्यों में प्रत्यक्ष भागीदारी के रूप में धारा 3 या धारा 5 या धारा 7 या धारा 9 में निर्दिष्ट अपराध करता है और उसे उक्त अपराधों के लिये उप-धारा (1) में उपबंधित दंड के अलावा क्रमशः धारा 4, धारा 6, धारा 8 और धारा 10 के तहत भी दंडित किया जाएगा।
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