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easy TIPS & TRICKS by Brijesh Shahu

Panchayati Raj Institutions

Panchayati Raj Institutions





 हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिये 'पंचायती राज संस्थानों की वित्त व्यवस्था' शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की है, यह रिपोर्ट भारत के पंचायती राज संस्थानों की वित्तीय कार्यप्रणाली पर प्रकाश डालती है।


रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु

राजस्व संरचना:

पंचायतों को अपने राजस्व का केवल 1% करों के माध्यम से प्राप्त होता हैं।

उनका अधिकांश राजस्व का स्रोत केंद्र और राज्यों द्वारा प्रदान किये गए अनुदान हैं।

डेटा के अनुसार राजस्व का 80% केंद्र सरकार के अनुदान और 15% राज्य सरकार के अनुदान से प्राप्त होता है।

राजस्व आँकड़े:

वित्तीय वर्ष 2022-23 में पंचायतों ने कुल 35,354 करोड़ रुपए का राजस्व प्राप्त किया।

उन्होंने अपने कर राजस्व से केवल 737 करोड़ रुपए अर्जित किये। पंचायतें ये राजस्व पेशे और व्यापार पर कर, भूमि राजस्व, स्टाम्प और रजिस्ट्रीकरण शुल्क, संपत्ति पर कर तथा सेवा कर के माध्यम से अर्जित करती हैं।

निर्दिष्ट वित्तीय वर्ष के दौरान गैर-कर राजस्व 1,494 करोड़ रुपए का था, इनका मुख्य स्रोत ब्याज भुगतान और पंचायती राज कार्यक्रम थे।

गौरतलब है कि पंचायतों को केंद्र सरकार से 24,699 करोड़ रुपए और राज्य सरकारों से 8,148 करोड़ रुपए का अनुदान प्राप्त हुआ।

प्रति पंचायत राजस्व:

औसतन प्रत्येक पंचायत ने अपने कर राजस्व से केवल 21,000 रुपए और गैर-कर राजस्व से 73,000 रुपए अर्जित किये।

इसके विपरीत, केंद्र सरकार से प्राप्त होने वाले अनुदान में प्रति पंचायत को लगभग 17 लाख रुपए प्रदान किये गए तथा राज्य सरकार ने प्रति पंचायत को 3.25 लाख रुपए की अनुदान राशि प्रदान की।

राज्य राजस्व हिस्सेदारी और अंतर-राज्यीय असमानताएँ:

अपने-अपने राज्य के राजस्व में पंचायतों की हिस्सेदारी वर्तमान समय भी न्यूनतम ही है।

उदाहरण के लिये, आंध्र प्रदेश में पंचायतों की राजस्व प्राप्तियाँ राज्य के राजस्व का केवल 0.1% है, जबकि उत्तर प्रदेश में यह आँकड़ा सभी राज्यों में सबसे अधिक, 2.5% है।

प्रति पंचायत अर्जित औसत राजस्व के संबंध में राज्यों में काफी भिन्नताएँ हैं।

60 लाख रुपए और 57 लाख रुपए प्रति पंचायत के औसत राजस्व के साथ केरल तथा पश्चिम बंगाल क्रमशः सबसे अग्रणी हैं।

असम, बिहार, कर्नाटक, ओडिशा, सिक्किम और तमिलनाडु में प्रति पंचायत राजस्व 30 लाख रुपए से अधिक था।

प्रति पंचायत 6 लाख रुपए से भी कम राजस्व के साथ आंध्र प्रदेश, हरियाणा, मिज़ोरम, पंजाब और उत्तराखंड जैसे राज्यों का औसत राजस्व काफी कम है।

RBI की सिफारिशें:

RBI अधिक विकेंद्रीकरण को बढ़ावा देने और स्थानीय नेताओं व अधिकारियों के सशक्तीकरण की सिफारिश की है। यह पंचायती राज की वित्तीय स्वायत्तता एवं स्थायित्व में वृद्धि करने में मदद करता है।

इस रिपोर्ट के अनुसार PRI पारदर्शी बजटिंग, राजकोषीय अनुशासन, संवर्द्धन प्राथमिकता में सामुदायिक भागीदारी, कर्मचारियों के प्रशिक्षण और निगरानी व मूल्यांकन जैसे तत्त्वों को अंगीकृत कर उपलब्ध संसाधन उपयोग में वृद्धि कर सकते हैं।

इसके अतिरिक्त, इसमें PRI की कार्यप्रणाली के बारे में जन जागरूकता बढ़ाने और प्रभावी स्थानीय शासन के लिये जन भागीदारी को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता पर बल दिया गया है।


पंचायतों द्वारा सामना की जाने वाली वित्तीयन की समस्याओं का कारण 

सीमित कराधान: 

उपकर और करारोपण के संबंध में PRI की शक्तियाँ सीमित हैं। राज्य सरकार प्रदान की जाने वाली धनराशि बहुत कम होने के साथ ही, जनता के बीच लोकप्रियता खोने के भय से आवश्यक धन जुटाने के विरुद्ध होते हैं।

कम क्षमता और उपयोग: 

PRI के पास शुल्क, टोल, किराया आदि जैसे विभिन्न स्रोतों से अपना राजस्व उत्पन्न करने की क्षमता और कौशल की कमी एक अन्य समस्या मानी जा सकती है।

खराब नियोजन, अनुवीक्षण और जवाबदेही तंत्र के कारण उन्हें धन के कुशलतापूर्वक तथा प्रभावी प्रयोग को लेकर भी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

राजकोषीय विकेंद्रीकरण: 

सरकार के उच्च स्तर द्वारा पंचायतों को वित्तीय शक्तियों और कार्यों का अपर्याप्त हस्तांतरण स्वतंत्र रूप से संसाधन जुटाने की उनकी क्षमता में बाधा उत्पन्न करता है। सीमित राजकोषीय विकेंद्रीकरण स्थानीय शासन तथा सामुदायिक सशक्तीकरण को कमज़ोर बनाता है।

पंचायतों की वित्तीय निर्भरता के परिणाम 


बाहरी स्रोतों से वित्तीयन पर निर्भरता के कारण सरकार के उच्च स्तरों का हस्तक्षेप अधिक होता है।

राज्य सरकारों द्वारा धन जारी करने में होने वाले विलंब के कारण पंचायत निजी धन का उपयोग करने के लिये मज़बूर होते हैं।

कुछ क्षेत्रों ने प्रमुख योजनाओं के तहत धन नहीं मिलने, जिससे उनके कामकाज पर असर पड़ा है, की भी सूचना दी है।

मार्च, 2023 में ग्रामीण विकास और पंचायती राज पर स्थायी समिति ने कहा कि 34 में से 19 राज्य/केंद्रशासित प्रदेशों को वित्त वर्ष 2023 में राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान योजना के तहत कोई धनराशि प्राप्त नहीं हुई।


पंचायती राज संस्थान (PRI) 

73वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1992 द्वारा पंचायती राज संस्थानों को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया और एक समान संरचना (PRI के तीन स्तर), चुनाव, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा महिलाओं के लिये सीटों का आरक्षण व निधि के अंतरण एवं PRI के कार्य और पदाधिकारी की एक प्रणाली स्थापित की गई।





पंचायतें तीन स्तरों पर कार्य करती हैं: 

ग्राम सभा (गाँव अथवा छोटे गाँवों का समूह), पंचायत समितियां (ब्लॉक परिषद) और ज़िला परिषद (ज़िला स्तर पर)।

भारत के संविधान का अनुच्छेद 243G राज्य विधानसभाओं को पंचायतों को स्व-सरकारी संस्थानों के रूप में कार्य करने का अधिकार और शक्तियाँ प्रदान करने की शक्ति प्रदान करता है।

पंचायतों के वित्तीय सशक्तीकरण के लिये भारतीय संविधान का अनुच्छेद 243H, अनुच्छेद 280(3)(bb) और अनुच्छेद 243-I निम्नलिखित प्रावधान करता है:

अनुच्छेद 243H राज्य विधानमंडलों को करों, शुल्कों, टोल और शुल्क लगाने, एकत्र करने के लिये पंचायतों को अधिकृत करने की शक्ति प्रदान करता है। यह उन्हें शर्तों व सीमाओं के अधीन, इन करों, शुल्कों, टोलों और शुल्कों को पंचायतों को सौंपने की भी अनुमति भी प्रदान करता है।

अनुच्छेद 280(3) (bb) के अनुसार यह केंद्रीय वित्त आयोग का कर्तव्य है कि वह राज्य में पंचायतों के संसाधनों की पूर्ति के लिये राज्य की समेकित निधि को बढ़ाने के लिये राज्य के वित्त आयोग द्वारा की गई सिफारिशों के आधार पर आवश्यक उपायों के बारे में राष्ट्रपति से सिफारिश करे।

अनुच्छेद 243-I के अनुसार राज्यपाल प्रत्येक पाँच वर्ष में राज्य वित्त आयोग के गठन का आदेश देता है। इन आयोगों का कार्य पंचायतों की वित्तीय स्थिति की समीक्षा करने तथा राज्यपाल को निम्नलिखित विषयों के संबंध में सलाह देना है:

राज्य और पंचायतों के बीच करों, कर्त्तव्यों, टोल तथा शुल्क के वितरण का मार्गदर्शन करने वाले सिद्धांत, जिसमें उनके संबंधित हिस्सेदारी व पंचायतों के विभिन्न स्तरों के बीच आवंटन शामिल हैं।

पंचायतों की वित्तीय स्थिति में सुधार के उपाय।

राज्यपाल द्वारा संदर्भित कोई अन्य वित्त संबंधी मामले।

पंचायती राज मंत्रालय पंचायती राज और पंचायती राज संस्थाओं से संबंधित सभी मामलों की देखरेख करता है। इसकी स्थापना मई 2004 में की गई थी।

पंचायत के वित्तीय सुधार के लिए अन्य उपाय :

पंचायत प्रमुख को गाँव की खाली जमीनों को उपयोग में लाना चाहिए जैसे मैरिज लॉन बनाकर ,व्यापारिक सब्जिओ और फलो की खेती करके उन्हें बाजार में बेचना |

गाँव की महिलाये जो Handmade वस्तुए बनाती  है उन्हें बनवाकर बाजार में बेचना इससे उनकी भी  आय बढ़ेगी और पंचायत की भी  इससे महिला ससक्तिकरण को भी बढ़ावा मिलेगा |

गाँव की चीजो से कुछ ऐसा विकसित करे जो टूरिज्म को बढ़ावा दे |

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