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easy TIPS & TRICKS by Brijesh Shahu

Military Nursing Service

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हाल  ही में सर्वोच्च न्यायालय रक्षा मंत्रालय को सैन्य नर्सिंग सेवा (MNS) में एक पूर्व स्थायी कमीशन अधिकारी को मुआवज़े के रूप में 60 लाख रुपए का भुगतान करने का निर्देश दिया है।


यह निर्णय दिया गया है कि अधिकारी को उसके विवाह के आधार पर वर्ष 1988 में "गलत तरीके से" सेवा से मुक्त कर दिया गया था।

नोट: अगस्त 2023 तक, 7,000 से अधिक महिला कर्मी भारतीय सेना में सेवा दे रही हैं, इसके बाद भारतीय वायु सेना में 809 तथा नौसेना में 1306 महिला कर्मी कार्यरत हैं।


मामले के मुख्य तथ्य

पृष्ठभूमि:

MNS की पूर्व स्थायी कमीशन अधिकारी को वर्ष 1988 में उनकी विवाह के आधार पर रोज़गार से मुक्त कर दिया गया था, जैसा कि वर्ष 1977 में सेना की निर्देश संख्या 61 द्वारा निर्धारित किया गया था जिसका शीर्षक "सैन्य नर्सिंग सेवा में स्थायी कमीशन के अनुदान के लिये सेवा के नियम और शर्तें" था। बाद में इसे 9 अगस्त, 1995 को एक पत्र द्वारा वापस ले लिया गया था।

यह MNS के नियमों एवं शर्तों को नियंत्रित करता था।

खंड 11 कुछ आधारों पर नियुक्ति की समाप्ति से संबंधित सेवाएँ यदि असंतोषजनक पाई जाती है। इनमें विवाह होना, कदाचार, अनुबंध का उल्लंघन अथवा "मेडिकल बोर्ड द्वारा सशस्त्र बलों में आगे की सेवा के लिये अयोग्य घोषित किया जाना" शामिल है;

वर्ष 2016 में उन्होंने कमीशन, नियुक्तियों, नामांकन एवं सेवा की शर्तों से संबंधित विवादों का निपटारा करने के लिये वर्ष 2007 के सशस्त्र बल न्यायाधिकरण अधिनियम के तहत स्थापित सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (AFT) का सहारा लिया। AFT द्वाराउसकी बर्खास्तगी को "अवैध" माना और साथ ही बकाया वेतन के साथ बहाल करने का निर्देश दिया।

हालाँकि केंद्र सरकार ने “भारत संघ एवं अन्य बनाम पूर्व लेफ्टिनेंट सेलिना जॉन'' शीर्षक मामले में सर्वोच्च न्यायालय में जाकर इस निर्णय का विरोध किया। 

सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियाँ:

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि सेवा से मुक्ति "गलत तथा अवैध" थी।

न्यायालय ने उस समय लागू एक नियम के आधार पर केंद्र के तर्क को भी खारिज कर दिया।

ऐसा नियम स्पष्ट रूप से मनमाना था, क्योंकि महिला का विवाह हो जाने के कारण रोज़गार समाप्त करना लैंगिक भेदभाव और असमानता का एक गंभीर मामला है।

महिला सैन्य अधिकारियों की भर्ती के लिये नीतिगत फ्रेमवर्क

महिला अधिकारियों को प्रारंभ में वर्ष 1992 में महिला विशेष प्रवेश योजना (Women Special Entry Scheme- WSES) के तहत भारतीय सेना में शामिल किया गया था।

WSES के तहत, उन्होंने सेना शिक्षा कोर और कोर ऑफ इंजीनियर्स जैसी कुछ नियत धाराओं में 5 वर्ष की अवधि तक सेवा की।

हालाँकि उन्हें पैदल सेना और बख्तरबंद कोर जैसी कुछ भूमिकाओं पर प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा।

वर्ष 2006 में, WSES को शॉर्ट सर्विस कमीशन योजना से प्रतिस्थापित कर दिया गया, जिसने महिला अधिकारियों को WSES से SSC में स्विच करने का विकल्प दिया।

SSC के तहत पुरुषों को दस वर्षों के लिये कमीशन दिया जाता था, जिसे चौदह वर्ष तक बढ़ाया जा सकता था। SSC में पुरुषों के पास पर्मानेंट कमीशन (PC) चुनने का विकल्प होता है।

सर्वोच्च न्यायालय ने सशस्त्र बलों में महिला अधिकारियों के पक्ष में किस प्रकार कार्रवाई की है?

भारत संघ बनाम लेफ्टिनेंट कमांडर एनी नागराजा मामला, 2015:

वर्ष 2015 में, विभिन्न संवर्गों (जैसे- रसद, कानून और शिक्षा) में शॉर्ट सर्विस कमीशन (SSC) अधिकारियों के रूप में भारतीय नौसेना में शामिल होने वाली सत्रह महिला अधिकारियों ने दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष रिट याचिका दायर की।

इन अधिकारियों ने SSC अधिकारियों के रूप में चौदह वर्ष की सेवा पूरी कर ली थी, लेकिन स्थायी कमीशन (PC) के अनुदान के लिये उन पर विचार नहीं किया गया और बाद में उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया गया।

वर्ष 2020 में, SC ने माना कि भारतीय नौसेना में सेवारत महिला शॉर्ट सर्विस कमीशन अधिकारी अपने पुरुष समकक्षों के बराबर स्थायी कमीशन की हकदार थीं।

सचिव, रक्षा मंत्रालय बनाम बबीता पुनिया मामला, 2020:

फरवरी 2020 में, SC ने SSC में महिलाओं की मांगों को बरकरार रखते हुए कहा कि स्थायी कमीशन (PC) या फुल-लेंथ करियर की मांग करना "उचित" था।

निर्णय से पूर्व, शॉर्ट सर्विस कमीशन (SSC) पर केवल पुरुष अधिकारी 10 वर्ष की सेवा के बाद PC का विकल्प चुन सकते थे, वहीं महिलाओं को सरकारी पेंशन के लिये अर्हता प्राप्त करने का अधिकार नहीं था।

न्यायालय के निर्णय ने सेना की 10 शाखाओं में महिला अधिकारियों को पुरुषों के बराबर ला दिया है।

सरकार के तर्क:

केंद्र ने तर्क दिया कि यह मुद्दा नीति का मामला है और कहा कि जब सशस्त्र बलों की बात आती है तो संविधान का अनुच्छेद 33 मौलिक अधिकारों को प्रतिबंधित करने की अनुमति देता है।

इसमें यह भी तर्क दिया गया कि "सेना में सेवा करने में जोखिम शामिल थे" और "क्षेत्रीय एवं उग्रवादी क्षेत्रों में गोपनीयता की कमी, मातृत्व मुद्दे तथा बच्चों की देखभाल" सहित प्रतिकूल सेवा शर्तें थीं।

मामला पहली बार वर्ष 2003 में महिला अधिकारियों द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय में दायर किया गया था और उच्च न्यायालय ने वर्ष 2010 में उन सभी शाखाओं में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन प्रदान किया, जहाँ वे सेवारत थीं।

वर्ष 2020 के फैसले के बाद:

वर्ष 2020 के फैसले के बाद सेना ने नंबर 5 चयन बोर्ड का गठन किया, जिसमें सेना को सभी पात्र महिला अधिकारियों को स्थायी आयोग (PC) अधिकारियों के रूप में शामिल करने का निर्देश दिया गया।

एक वरिष्ठ सामान्य अधिकारी के नेतृत्व में विशेष बोर्ड सितंबर 2020 में लागू हुआ। इसमें ब्रिगेडियर रैंक की एक महिला अधिकारी भी शामिल हैं।

यहाँ स्क्रीनिंग प्रक्रिया के लिये अर्हता प्राप्त करने वाली महिला अधिकारियों को स्वीकार्य चिकित्सा श्रेणी में होने के अधीन स्थायी आयोग (PC) का दर्जा दिया जाएगा।

भारतीय तटरक्षक बल में महिलाओं के लिये स्थायी आयोग:

प्रियंका त्यागी बनाम भारत संघ मामले, 2024 में, सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर बल दिया कि योग्य महिला अधिकारियों को भारतीय तटरक्षक बल में स्थायी कमीशन मिले।

अटॉर्नी जनरल ने महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने में परिचालन संबंधी चुनौतियों का हवाला देते हुए दलीलें पेश कीं।

हालाँकि न्यायालय ने इन तर्कों को खारिज कर दिया और इस बात पर ज़ोर दिया कि वर्ष 2024 में, ऐसे योग्यता का कोई औचित्य नहीं है।

सर्वोच्च न्यायालय ने पितृसत्तात्मक मानदंडों से हटने का आह्वान करते हुए केंद्र से इस मामले पर लिंग-तटस्थ नीति विकसित करने का आग्रह किया।

यह उदाहरण लैंगिक समानता के लिये चल रहे संघर्ष और सशस्त्र बलों सहित समाज के सभी क्षेत्रों में महिलाओं के समावेश तथा सशक्तीकरण को सुनिश्चित करने हेतु सक्रिय उपायों की आवश्यकता को रेखांकित करता है।

सशस्त्र बलों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने का क्या महत्त्व है?

लैंगिकता बाधक नहीं: यदि आवेदक किसी पद के लिये योग्य है तो लैंगिकता उसकी योग्यता में बाधा नहीं बन सकती। आधुनिक उच्च प्रौद्योगिकी युद्धक्षेत्र में तकनीकी विशेषज्ञता और निर्णय लेने के कौशल साधारण शक्ति की तुलना में अधिक मूल्यवान होते जा रहे हैं। 

सैन्य तैयारी: मिश्रित लैंगिक बल की अनुमति देने से सेना मज़बूत रहती है। वर्तमान में रिटेंशन और भर्ती दरों में गिरावट से सशस्त्र बल गंभीर रूप से परेशान हैं। महिलाओं को युद्धक भूमिका में अनुमति देकर इस परेशानी को कम किया जा सकता है। 

प्रभावशीलता: महिलाओं पर पूर्ण प्रतिबंध, सेना में कमांडरों की नौकरी के लिये सबसे सक्षम व्यक्ति को चुनने की क्षमता को सीमित करता है।

परंपरा: युद्ध इकाइयों में महिलाओं के एकीकरण की सुविधा के लिये प्रशिक्षण की आवश्यकता होगी। समय के साथ संस्कृतियाँ बदलती हैं और इससे मातृ उपसंस्कृति भी विकसित हो सकती है। 

वैश्विक परिदृश्य: वर्ष 2013 में महिलाओं को आधिकारिक तौर पर अमेरिकी सेना में लड़ाकू पदों के लिये पात्रता प्रदान की गई जिसे लैंगिक समता की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम के रूप में माना गया। वर्ष 2018 में ब्रिटेन की सेना ने नज़दीकी मुकाबले वाली भूमिकाओं में महिलाओं की सेवा पर लगे प्रतिबंध को हटा दिया गया जिससे उनके लिये विशिष्ट विशेष बलों में सेवा करने का अवसर प्राप्त हुआ।

MNS क्या है?

MNS सशस्त्र बलों की एकमात्र महिला कोर (Corps) है। MNS, सशस्त्र बल चिकित्सा सेवाओं (AFMS) का एक अभिन्न अंग है, जिसमें आर्मी मेडिकल कोर (AMC) और आर्मी डेंटल कोर (ADC) शामिल हैं।

सैन्य नर्सिंग सेवा (MNS) का मिशन शांति और युद्ध दोनों स्थिति में 'रोगी देखभाल में उत्कृष्टता' प्रदान करना है।

सैन्य नर्सिंग सेवा के अधिकारी स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं में AFMS सेवाथियों की निरंतर बदलती और बढ़ती मांगों को पूरा करने में हमेशा तत्पर रहे हैं तथा स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में अग्रिम सहायक की भूमिका निभाते रहे हैं।

AFMS के कार्मिक भारत के चिकित्सा प्रतिष्ठानों में सेवा प्रदान करते हैं और विदेशों में संयुक्त राष्ट्र शांति मिशनों में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं।

सैन्य नर्सों ने पहली बार वर्ष 2024 के गणतंत्र दिवस परेड में मार्च किया फिर भी उन्हें पूर्व सैनिक का दर्जा नहीं दिया गया।

फरवरी 2024 में पंजाब और हरियाणा उच्च नयायालय ने निर्णय किया कि MNS अधिकारियों को पंजाब पूर्व सैनिक भर्ती नियम, 1982 के तहत पूर्व सैनिक का दर्जा देने से इनकार नहीं किया जा सकता है।

इसके तहत जिन अधिकारियों को उनका कार्यकाल पूरा होने पर ग्रेच्युटी (जैसा कि SSC अधिकारी करते हैं) के साथ सेवा से मुक्त कर दिया गया था, उन्हें पूर्व सैनिकों के रूप में वर्गीकृत किया गया।

आगे की राह

भेदभावपूर्ण प्रथाओं का उन्मूलन करने और महिला अधिकारियों के लिये समान अवसर सुनिश्चित करने के लिये व्यापक नीति सुधार लागू करने की आवश्यकता है जिसमें उन्हें सभी शाखाओं और रैंकों में स्थायी कमीशन तक समान पहुँच प्रदान करना शामिल है।

सशस्त्र बलों के भीतर लैंगिक समता, सम्मान और समावेशन की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिये सैन्य कर्मियों के लिये नियमित जागरूकता कार्यक्रम तथा संवेदनशीलता प्रशिक्षण आयोजित करना चाहिये।

महिला अधिकारियों की आवश्यकताओं के अनुरूप सहायता प्रणाली और सुविधाएँ स्थापित करना जिसमें मातृत्व अवकाश, शिशु देखभाल सहायता तथा पर्याप्त चिकित्सा सुविधाओं के प्रावधान शामिल करने आवश्यकता है। 

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