About Geographical Indication
About Geographical Indication
भूगोलीय संकेत (Geographical Indication - GI) एक शीर्षक है जो किसी स्थान के विशिष्ट उत्पाद को या उसकी मूलत: विशिष्टता को संकेत करता है। यह खास गुणवत्ता, अद्वितीयता या अन्य विशेष विशेषताओं को दर्शाता है जो किसी विशिष्ट क्षेत्र, स्थान, या लोक संगठन से जुड़ा होता है।
भूगोलीय संकेत एक उत्पाद की मूल उत्पत्ति स्थान को दर्शाता है और इसे विशिष्टता और मान्यता प्रदान करता है। इसे उत्पाद के गुणवत्ता और क्षेत्रीय पहचान को सुरक्षित करने के लिए प्रयोग में लाया जाता है।
भौगोलिक संकेतक (GI) क्या है?
परिचय:
भौगोलिक संकेतक (GI) टैग, एक ऐसा नाम या चिह्न है जिसका उपयोग उन विशेष उत्पादों पर किया जाता है जो किसी विशिष्ट भौगोलिक स्थान या मूल से संबंधित होते हैं।
भौगोलिक संकेतकों को पेरिस कन्वेंशन के अनुच्छेद 1(2) एवं 10 के तहत बौद्धिक संपदा अधिकारों (IPR) के एक भाग के रूप में मान्यता दी गई है और इन्हें बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार संबंधी पहलुओं (TRIPS) समझौते के अनुच्छेद 22-24 के तहत भी मान्यता प्राप्त है।
कई यूरोपीय संघ के देशों में, GI को दो बुनियादी श्रेणियों संरक्षित GI (Protected GI - PGI) और संरक्षित मूल स्थान (Protected Destination of Origin - PDO) में वर्गीकृत किया गया है। भारत में केवल PGI श्रेणी मौजूद है।
यह प्रमाणीकरण गैर-कृषि उत्पादों तक भी बढ़ाया जाता है, जैसे मानव कौशल पर आधारित हस्तशिल्प, कुछ क्षेत्रों में उपलब्ध सामग्री और संसाधन जो उत्पाद को अद्वितीय बनाते हैं।
GI का पारंपरिक ज्ञान, संस्कृति की रक्षा के लिये एक शक्तिशाली उपकरण है और सामाजिक-आर्थिक विकास को बढ़ावा दे सकता है।
विधिक ढाँचा तथा दायित्व:
यह बौद्धिक संपदा अधिकार के व्यापार-संबंधित पहलुओं (TRIPS) पर विश्व व्यापार संगठन (WTO) समझौते द्वारा विनियमित एवं निर्देशित है।
वस्तुओं का ‘वस्तुओं का भौगोलिक सूचक’ (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999 भारत में वस्तुओं से संबंधित भौगोलिक संकेतकों के पंजीकरण तथा बेहतर संरक्षण प्रदान करने का प्रयास करता है।
इसके अतिरिक्त बौद्धिक संपदा के अभिन्न घटकों के रूप में औद्योगिक संपत्ति और भौगोलिक संकेतकों की सुरक्षा के महत्त्व को पेरिस कन्वेंशन के अनुच्छेद 1(2) एवं 10 में स्वीकार किया गया, साथ ही इसके संरक्षण पर अधिक बल भी दिया गया है।
GI-टैग पंजीकरण की स्थिति:
अन्य देशों की तुलना में भारत GI पंजीकरण (registration) के मामले में पीछे है। GI रजिस्ट्री के अनुसार, दिसंबर 2023 तक, बौद्धिक संपदा भारत को केवल 1,167 आवेदन प्राप्त हुए, जिनमें से केवल 547 उत्पाद पंजीकृत किये गए हैं।
विश्व बौद्धिक संपदा संगठन के 2020 के आँकड़ों के अनुसार, 15,566 पंजीकृत उत्पादों के साथ जर्मनी GI पंजीकरण में सबसे आगे है, इसके बाद चीन (7,247) का स्थान आता है।
वैश्विक स्तर पर, पंजीकृत GI में वाइन और स्पिरिट का हिस्सा 51.8% है, इसके बाद कृषि उत्पाद एवं खाद्य पदार्थ (29.9%) आते हैं।
भारत में हस्तशिल्प (लगभग 45%) और कृषि (लगभग 30%) में अधिकांश GI उत्पाद शामिल हैं।
भारत में GI टैग के संबंध में चिंताएँ:
GI अधिनियम और पंजीकरण प्रक्रिया से संबंधित चिंताएँ:
दो दशक पहले बनाए गए GI अधिनियम, 1999 में वर्तमान चुनौतियों से निपटने के लिये समय पर संशोधन करने की आवश्यकता है।
सरल अनुपालन के लिये पंजीकरण फॉर्म और आवेदन प्रसंस्करण समय को सरल बनाने की आवश्यकता है।
भारत में वर्तमान आवेदन स्वीकृति अनुपात केवल लगभग 46% है।
उपयुक्त संस्थागत विकास की कमी GI सुरक्षा तंत्र के प्रभावी कार्यान्वयन में बाधा उत्पन्न करती है।
मार्गदर्शन और समर्थन की कमी के कारण उत्पादक अक्सर GI पंजीकरण के बाद संघर्ष करते हैं।
उत्पादकों की परिभाषा में अस्पष्टता:
GI अधिनियम,1999 में "उत्पादकों" को परिभाषित करने में स्पष्टता की कमी के कारण मध्यस्थों की भागीदारी होती है।
मध्यस्थों को GI से लाभ होता है, जिससे वास्तविक उत्पादकों का अपेक्षित लाभ कम हो जाता है।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विवाद:
विशेषकर दार्जिलिंग चाय और बासमती चावल जैसे उत्पादों से संबंधित विवादों से संकेतक मिलता है कि पेटेंट, ट्रेडमार्क एवं कॉपीराइट की तुलना में GI के विकास पर कम ध्यान दिया जाता है।
शैक्षणिक सीमा:
GI पर सीमित अकादमिक फोकस भारत से केवल सात प्रकाशनों से स्पष्ट है।
प्रकाशनों में हालिया उद्भव- 2021 में जारी 35 लेख- शिक्षाविदों के बीच बढ़ती रुचि का संकेत देते हैं।
इटली, स्पेन और फ्राँस जैसे यूरोपीय देश GI से संबंधित अकादमिक प्रकाशनों में अग्रणी हैं।
GI-आधारित उत्पादों की क्षमता की पहचान करने के लिये क्या किया जा सकता है?
GI आधारित उत्पादों को बढ़ावा देने के लिये सरकार द्वारा ज़मीनी स्तर पर उत्पादकों को प्रोत्साहित किये जाने की आवश्यकता है।
कानूनों को वास्तविक उत्पादकों को सीधा लाभ सुनिश्चित करते हुए "गैर-उत्पादकों" को लाभ से बाहर करने की आवश्यकता है।
GI हितधारकों के बीच प्रौद्योगिकी, कौशल निर्माण और डिजिटल साक्षरता आधुनिकीकरण के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
सरकारी एजेंसियों को प्रदर्शनियों का आयोजन करने और विभिन्न मीडिया के माध्यम से GI-आधारित उत्पादों को बढ़ावा देने के लिये व्यापार संघों के साथ सहयोग करने की ज़रूरत है ।
विदेशी बाज़ार में विकास को प्रोत्साहित करने के लिये भारतीय दूतावासों को GI-आधारित उत्पादों को सक्रिय रूप से बढ़ावा देना चाहिये।
अनुकूल अंतर्राष्ट्रीय टैरिफ व्यवस्था और WTO में GI उत्पादों पर विशेष ध्यान वैश्विक उपस्थिति को बढ़ावा दे सकता है।
एक ज़िला एक उत्पाद योजना के साथ GI को एकीकृत करने से प्रचार और बाज़ार तक पहुँच बढ़ सकती है।
बाज़ार आउटलेट योजनाएँ विकसित करना, विशेष रूप से ग्रामीण बाज़ार (ग्रामीण हाट), GI उत्पाद दृश्यता को बढ़ावा दे सकते हैं।
GI उत्पादों की गुणवत्ता में उपभोक्ताओं का विश्वास सुनिश्चित करने के लिये बाज़ारों में परीक्षण प्रयोगशालाएँ स्थापित करना आवश्यक है।
स्टार्टअप को GI के साथ संरेखित करना और उनके प्रदर्शन को सतत विकास लक्ष्यों (SDG) के साथ जोड़ना सामाजिक विकास में योगदान दे सकता है।
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