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easy TIPS & TRICKS by Brijesh Shahu

About Malnutrition

About Malnutrition




 भारत कुपोषण के व्यापक बोझ के साथ एक उल्लेखनीय चुनौती का सामना कर रहा है। यह मुद्दा देश में सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक भिन्नताओं के जटिल मिश्रण से जुड़ा हुआ है। इस व्यापक समस्या की बहुमुखी प्रकृति पोषण संबंधी संकेतकों में आगे और गिरावट को रोकने के लिये तत्काल ध्यान देने और समर्पित संसाधनों का निवेश करने की मांग रखती है।


कुपोषण (Malnutrition):

परिचय:

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, कुपोषण का तात्पर्य किसी व्यक्ति की ऊर्जा एवं पोषक तत्व ग्रहण में कमी, अधिकता या असंतुलन से है।

यह ऐसी स्थिति है जो किसी व्यक्ति के आहार में ऐसे महत्त्वपूर्ण पोषक तत्वों के अपर्याप्त सेवन से उत्पन्न होती है जो इष्टतम स्वास्थ्य, वृद्धि एवं विकास के लिये आवश्यक होते हैं।




प्रकार:

अल्पपोषण (Undernutrition):

वेस्टिंग (Wasting): कद अनुरूप निम्न वजन (Low weight-for-height) को ‘वेस्टिंग’ के रूप में जाना जाता है। यह तब उत्पन्न होता है जब किसी व्यक्ति के पास खाने के लिये पर्याप्त भोजन नहीं होता है और/या उन्हें कोई संक्रामक बीमारी हो जाती है।

स्टंटिंग (Stunting): आयु अनुरूप निम्न कद (Low height-for-age) को ‘स्टंटिंग’ के रूप में जाना जाता है। यह प्रायः अपर्याप्त कैलोरी ग्रहण के कारण उत्पन्न होता है।

अल्प-वजन (Underweight): आयु अनुरूप निम्न वजन (low weight-for-age) को अल्प-वजन के रूप में जाना जाता है। अल्प-वजन से ग्रस्त बच्चे स्टंटिंग और वेस्टिंग या दोनों के शिकार हो सकते हैं।

सूक्ष्म पोषक तत्व संबंधी कुपोषण:

विटामिन A की कमी: विटामिन A के अपर्याप्त सेवन से दृष्टि दोष, कमज़ोर प्रतिरक्षा (immunity) और अन्य स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।

लौह-तत्व की कमी: लौह-तत्व या आयरन की कमी एनीमिया का कारण बनती है जिससे शरीर की ऑक्सीजन परिवहन क्षमता प्रभावित होती है और इससे थकान एवं कमज़ोरी महसूस होती है।

आयोडीन की कमी: इस थायरॉइड से संबंधित विकार उत्पन्न होते हैं जो वृद्धि और संज्ञानात्मक विकास को प्रभावित करते हैं।

मोटापा (Obesity): अत्यधिक कैलोरी का सेवन, प्रायः गतिहीन जीवनशैली के साथ मिलकर मोटापे का कारण बन सकता है। यह शरीर में अतिरिक्त वसा के संचय के रूप में प्रकट होता है, जिससे हृदय संबंधी बीमारियाँ और मधुमेह जैसे स्वास्थ्य जोखिम उत्पन्न होते हैं।

वयस्कों में अति-वजन (overweight) को 25 या उससे अधिक के BMI (Body Mass Index), जबकि मोटापे को 30 या उससे अधिक के BMI के रूप में परिभाषित किया गया है।

आहार-संबंधी गैर-संचारी रोग: इसमें हार्ट अटैक एवं स्ट्रोक जैसे हृदय संबंधी रोग शामिल हैं, जो प्रायः उच्च रक्तचाप से जुड़े होते हैं और जो मुख्यतः अस्वास्थ्यकर आहार एवं अपर्याप्त पोषण से उत्पन्न होते हैं।

वैश्विक व्यापकता:

वैश्विक स्तर पर, वर्ष 2022 में 5 वर्ष से कम आयु के 149 मिलियन बच्चों के स्टंटिंग, 45 मिलियन बच्चों के वेस्टिंग और 37 मिलियन बच्चों के अति-वजन या मोटापे का शिकार होने का अनुमान लगाया गया था।

5 वर्ष से कम आयु के बच्चों की मौतों के लगभग आधे हिस्से के लिये कुपोषण को ज़िम्मेदार माना जाता है।

1.9 बिलियन वयस्क अति-वजन या मोटापे से ग्रस्त हैं, जबकि 462 मिलियन वयस्क अल्प-वजन के शिकार हैं।

भारत में कुपोषण की गंभीरता (Severity of Malnutrition):

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 5 के अनुसार:

कुपोषण की व्यापकता:

5 वर्ष से कम आयु के 35.5% बच्चे स्टंटिंग के शिकार हैं

19.3% बच्चे वेस्टिंग के शिकार हैं

32.1% बच्चे अल्प-वजन के शिकार हैं

3% बच्चे अति-वजन के शिकार हैं

15-49 आयु वर्ग की महिलाओं में कुपोषण का स्तर 18.7% है

एनीमिया की व्यापकता:

पुरुषों में 25.0% (15-49 वर्ष)

महिलाओं में 57.0% (15-49 वर्ष)

किशोर बालकों में 31.1% (15-19 वर्ष )

किशोर बालिकाओं में 59.1% (15-19 वर्ष )

गर्भवती महिलाओं में 52.2% (15-49 वर्ष)

बच्चों में 67.1% (6-59 माह)

विश्व में खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति, 2023: भारत की लगभग 74% आबादी स्वस्थ आहार ग्रहण करने का सामर्थ्य नहीं रखती, जबकि 39% पर्याप्त पोषक तत्व प्राप्त करने में अक्षम रहते हैं।

वैश्विक भुखमरी सूचकांक (GHI) 2023: भारत का वर्ष 2023 का GHI स्कोर 28.7 है, जो GHI सेवेरिटी ऑफ हंगर स्केल के अनुसार गंभीर स्थिति को प्रकट करता है।

भारत में बच्चों की वेस्टिंग दर 18.7 है, जो रिपोर्ट में सर्वाधिक है।

भारत में कुपोषण से प्रभावी ढंग से कैसे निपटा जा सकता है?

फूड फोर्टिफिकेशन’ को अपनाना: मुख्य खाद्य पदार्थों के प्रसंस्करण के दौरान आवश्यक पोषक तत्वों को शामिल करना अपेक्षाकृत निम्न लागत वाली विधि है, जो इसे बड़े पैमाने पर कार्यान्वयन के लिये आर्थिक रूप से व्यवहार्य बनाती है।

वर्ष 1992 में राष्ट्रीय आयोडीन अल्पता विकार नियंत्रण कार्यक्रम (National Iodine Deficiency Disorders Control Programme) के तहत आयोडीन युक्त नमक को अपनाने से घेंघा रोग की दर में व्यापक रूप से कमी आई।

एक केंद्रित SBCC कार्ययोजना विकसित करना: सरकार को कुपोषण को संबोधित करने के लिये विशेष रूप से तैयार एक सुसंरचित एवं केंद्रित सामाजिक और व्यवहार परिवर्तन संचार (Social and Behavior Change Communication- SBCC) कार्ययोजना विकसित करने के लिये सहकार्यता स्थापित करनी चाहिये।

इस योजना में प्रभावी संचार के लिये उद्देश्यों, लक्षित लोगों, मुख्य संदेशों और रणनीतियों की रूपरेखा होनी चाहिये।

स्वास्थ्य देखभाल अवसंरचना को उन्नत बनाना: सरकार को विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं को सुदृढ़ करने और कुपोषण का शीघ्र पता लगाने एवं प्रबंधन करने के उपाय करने चाहिये। कुपोषण के निदान एवं उपचार के लिये स्वास्थ्यकर्मियों की क्षमता में सुधार पर और अधिक ध्यान दिया जाना चाहिये।

भारत को अपनी आबादी की स्वास्थ्य देखभाल आवश्यकताओं को उपयुक्त रूप से पूरा करने के लिये 3.5 मिलियन अतिरिक्त अस्पताल बिस्तरों की आवश्यकता है।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (NHP) ने वर्ष 2025 तक सरकार के स्वास्थ्य व्यय को सकल घरेलू उत्पाद के मौजूदा 1.2% से बढ़ाकर 2.5% करने की अनुशंसा की है।

निगरानी और मूल्यांकन: पोषण संबंधी हस्तक्षेपों के प्रभाव का पता लगाने के लिये व्यापक रूप से सक्षम निगरानी एवं मूल्यांकन प्रणाली स्थापित किये जाएँ।

उदाहरण के लिये, ‘पोषण ट्रैकर’ (Poshan Tracker) प्रत्येक आंगनवाड़ी में कुपोषित और ‘गंभीर रूप से कुपोषित’ बच्चों पर रियल-टाइम डेटा रिकॉर्ड करता है।

स्थानीय रूप से उपलब्ध पौष्टिक भोजन का उपभोग करना: सरकार को ऐसे स्थानीय रूप से उपलब्ध और पारंपरिक खाद्य पदार्थों के उपभोग को बढ़ावा देना चाहिये जो आवश्यक पोषक तत्वों से भरपूर हों। विभिन्न प्रकार के स्थानीय रूप से उपलब्ध खाद्य पदार्थों के उपभोग को प्रोत्साहित करने से आहार विविधता बढ़ती है।

सामुदायिक सशक्तीकरण: पोषण कार्यक्रमों को अभिकल्पित और कार्यान्वित करने में स्थानीय समुदायों को संलग्न करें। समुदाय-आधारित पहलों से पौष्टिक खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा मिलेगा।

संचार रणनीतियाँ: लाभार्थियों के बीच विश्वास निर्माण के लिये सामुदायिक रेडियो, वीडियो जैसे संचार माध्यमों और घर-घर तक पहुँच जैसे उपायों का उपयोग करना आवश्यक है।

स्थानीय संदर्भों को संबोधित करते हुए बेहतर समझ और संलग्नता सुनिश्चित करने के लिये संदेशों को स्थानीय भाषाओं में प्रस्तुत किया जाना चाहिये।

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